गर्भावस्‍था के दौरान डायबिटीज के बारे में जरूरी बातें

गर्भावस्‍था के दौरान डायबिटीज के बारे में जरूरी बातें

डॉक्‍टर अनूप मिश्रा

 

  • गर्भावस्‍था से संबंधित दो तरह का डायबिटीज देखने को मिलता है। पहला, डायबिटीज का मरीज गर्भ धारण करे और दूसरा, गर्भावस्‍था के दौरान महिला का ब्‍लड शुगर लेवल बढ़ जाए (जेस्‍टेस्‍नल डायबिटीज)। किसी भी स्थिति में ब्‍लड शुगर का स्‍तर नियंत्रण में लाना जरूरी है और पहले वाली स्थिति में इसे गर्भावस्‍था शुरू होने से पहले ही नियंत्रित करने की जरूरत है;
  • मां और उसके भ्रूण के लिए ब्‍लड शुगर का बढ़ा हुआ स्‍तर नुकसानदेह है। डायबिटीज के ऐसे मरीज को बच्‍चे की प्‍लानिंग कर रहे हों, उन्‍हें गर्भधारण की तैयारी से दो से तीन महीने पहले से ही अपने ब्‍लड शुगर के स्‍तर को सामान्‍य स्‍तर के आस पास लाना चाहिए। गर्भावस्‍था के पहले और दौरान मां के ब्‍लड शुगर के स्‍तर को सामान्‍य बनाए रखने से मां और बच्‍चे दोनों के स्‍वास्‍थ्‍य को फायदा पहुंचाता है;
  • गर्भावस्‍था के दौरान ब्‍लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए खाने वाली दवाओं के बदले इंसुलिन की जरूरत पड़ती है। टाईप 1 डायबिटीज के मरीजों को गर्भावस्‍था के दौरान इंसुलिन के अतिरिक्‍त डोज की जरूरत हो सकती है;
  • शुगर के स्‍तर को नियंत्रित रखने के लिए ब्‍लड शुगर की नियमित मॉनिटरिंग जरूरी है;
  • टाईप 1 और टाईप 2 डायबिटीज के मरीजों को गर्भावस्‍था और बच्‍चे के जन्‍म के दौरान कुछ जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है:
    • स्‍वत: गर्भपात, मिसकैरेज और मृत बच्‍चे के जन्‍म का जोखिम बढ़ जाता है
    • ऐसे में एक जोखिम यह रहता है कि अजन्‍मे बच्‍चे का वजन बहुत अधिक हो, कई बार 4 किलो से भी अधिक (मेक्रोसोमिया); कई अन्‍य समस्‍याओं के कारण भ्रूण को जोखिम बढ़ जाता है;
    • सीजेरियन बर्थ की आशंका बढ़ जाती है और साथ ही जन्‍म के समय संकट और कोई इंजरी होने का जोखिम भी ज्‍यादा रहता है;
    • बच्‍चे में बड़े होकर मोटे होने और टाईप 2 डायबिटीज मेलिटस होने का खतरा बढ़ जाता है।

 

गर्भावस्था के डायबिटीज की जांच

  • ‘वन स्‍टेप’ प्रोसेस (इंटरनेशनल ऐसोसिएशन ऑफ डायबिटीज एंड प्रेगनेंसी स्‍टडी ग्रुप की सर्वसम्‍मत गाइडलाइंस);

ऐसी महिलाएं जिनमें पहले से डायबिटीज नहीं रहा हो उनमें गर्भावस्‍था के 24 से 28 हफ्ते के बीच पूरी रात की करीब 8 से 10 घंटे की फास्टिंग के बाद सुबह के समय 75 ग्राम ग्‍लूकोज टॉलरेंस टेस्‍ट (ओजीटीटी) किया जाना चाहिए और साथ ही खाली पेट और 1 और 2 घंटे बाद प्‍लाज्‍मा ग्‍लूकोज की जांच की जानी चाहिए (एनेक्‍स्‍चर1 देखें)। यदि नीचे दिए गए शुगर के स्‍तरों में से कोई भी बढ़ा हुआ पाया जाए तो गर्भवती महिला में जेस्‍टेशनल डायबिटीज मेलिटस की पहचान होगी:

फास्टिंग: 92 mg/dl के बराबर या अधिक (5.1एमएमओएल/लीटर)

एक घंटे बाद: 180 mg/dl के बराबर या अधिक (10.0 एमएमओएल/लीटर)

दो घंटे बाद: 153 mg/dl के बराबर या अधिक (8.5 एमएमओएल/लीटर)

 

  • ‘टू स्‍टेप’ प्रोसेस (अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्‍थ की सर्वसम्‍मत गाइडलाइंस);

ऐसी गर्भवती महिला जो पहले से डायबिटीज की मरीज नहीं है, उनमें गर्भावस्‍था से 24 से 28 हफ्ते के बीच बिना फास्टिंग के 50 ग्राम ग्‍लूकोज चैलेंज टेस्‍ट (स्‍टेप 1) ग्‍लूकोज पिलाने के एक घंटे के बाद करें। यदि प्‍लाज्‍मा ग्‍लूकोज का स्‍तर 140 mg/dl के बराबर या इससे अधिक आए तो 100 ग्राम ओजीटीटी (स्‍टेप 2) करें। हालांकि स्‍टेप 2 की प्रक्रिया मरीज की फास्टिंग की स्थिति में किया जाना चाहिए। यदि फास्टिंग से पहले और 100 ग्राम ग्‍लूकोज पीने के बाद नीचे दिए 4 परिणामों में से दो का नतीजा बढ़ा हुआ आए तो डायबिटीज कन्‍फर्म माना जाना चाहिए:

फास्टिंग: 95 mg/dl (5.3एमएमओएल/लीटर)

ग्‍लूकोज पीने के एक घंटे बाद: 180 mg/dl (10 एमएमओएल/लीटर)

दो घंटे बाद: 155 mg/dl (8.6 एमएमओएल/लीटर)

तीन घंटे बाद: 140 mg/dl (7.8 एमएमओएल/लीटर)

 

प्रबंधन:

  • ऐसे मरीजों की स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल डायबिटीज रोग विशेषज्ञ और स्‍त्री रोग विशेषज्ञ को मिलकर करनी चाहिए
  • भोजन: मरीज को एक दिन में थोड़ा थोड़ा करके तीन बार संपूर्ण भोजन और तीन बार हलका नाश्‍ता करना चाहिए; भोजन के समय पर पूरा ध्‍यान रखें, भोजन में रेशेदार पदार्थ जैसे कि फल, सब्जियां और पूर्ण अनाज को शामिल करें। ऐसे मरीजों को पोषाहार चार्ट बनाने के लिए कई बार पोषाहार विशेषज्ञ की मदद की जरूरत पड़ती है।
  • दोनों डॉक्‍टरों यानी कि डायबेटोलॉजिस्‍ट और गायनेकोलॉजिस्‍ट के दिशानिर्देश में शारीरिक व्‍यायाम करते रहना अनिवार्य है।
  • ब्‍लड शुगर का स्‍तर नियमित रूप से जांचते रहना चाहिए। भूखे पेट, खाने के एक एक घंटे और दो घंटे बाद वाली जांच करते रहना भी जरूरी है।
  • गर्भावस्‍था के दौरान ब्‍लड शुगर को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन की अतिरिक्‍त मात्रा की जरूरत पड़ सकती है।
  • नमक का इस्‍तेमाल कम करना पड़ सकता है।
  • भ्रूण के विकास की लगातार जांच ब्‍लड टेस्‍ट और अल्‍ट्रासाउंड के जरिये करते रहना चाहिए।
  • हाइपोग्‍लाइसीमिया और कीटोऐसि‍डोसिस की स्थिति से बचने के लिए ब्‍लड शुगर की गंभीर निगरानी (खासकर टाईप 1 डायबिटीज के मरीजों में) करने की जरूरत होती है।
  • इस दौरान थायरायड हार्मोन को पूरी सख्‍ती से रेंज के अंदर रखना होता है।
  • गर्भावस्‍था में ब्‍लड शुगर के लक्ष्‍य:
    • फास्टिंग ब्‍लड शुगर: 60-90 mg/dl
    • प्री प्रैंडियल (भोजन से पहले ब्‍लड शुगर का स्‍तर): 60-105 mg/dl
    • खाने के एक घंटे बाद: 130-140 mg/dl से कम
    • खाने के दो घंटे बाद: 120 mg/dl से कम

(डॉक्‍टर अनूप मिश्रा की किताब डायबिटीज विद डिलाइट से साभार)

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